इन दिनों भाजपा में संगठन की भाग दौड़ ऐसे हाथों में सौंप दी जिससे बंदर के हाथ में उस्तरा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। जिन कार्यकर्ताओं को बडी ही मेहनत के साथ भाजपा के सांचे में ढाला गया। उन पर फोटो छाप नेता कांग्रेस से हाथ मिलाने के आरोप सार्वजनिक रूप से लगा रहा है। थोथा चना बाजे घना वाली कहावत चरितार्थ करने वाला नेता कभी कार्यकर्ताओं को पोस्टर बेनर पर फोटो आगे-पीछे होने पर सार्वजनिक रूप से हडकाता है तो कभी जनहीत के कामों में खडे पार्टी पदाधिकारियों को संगठन का क ख ग सिखाते हुए इन्हे प्रताडित करता है। अब बेचारे भाजपा के सांचे में ढले कार्यकर्ताओं को या तो फिर से संगठन का क ख ग सीखाना पढेगा या फिर नेताजी की फोटो की अर्चना।
बात तो यह है कि ये फोटो छाप नेता जहां भी गए बिन पेंदें के लौटे के समान कभी इधर तो कभी उधर पलट गए। नगर में चर्चा है कि थांदला में जो विवाद चल रहा है उस विवाद की जड भी यहीं है।
विगत दिनों बामनिया के कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं की ऐसी ही जलीलता का सामना करना पडा क्योंकि उनके द्वारा इस फोटो छाप नेता का फोटो एक फोटो के पीछे लग गया। जैसे ही नेताजी की नजर बेनर पर पढी नेताजी का खूल खौल गया और फोटो छाप नेता सार्वजनिक रूप् से बेचारे कार्यकर्ताओ को सार्वजनिक रूप् से नेता से भाजपा के नियम कायदे और प्रोटोकाॅल सिखा दिया। नेता के वहां से खीसकते ही आम चर्चा थी की इतना फोटो प्रेमी नेता भाजपा की फोटो में ही नय्या पार कर सकता है।
कभी नेता तो कभी पत्रकार कभी भी कहीं भी ये फोटो छाप नेता अपना पाला बदल लेते है और जहां मौका मिले अपनी रोटियां सेकने में लग जाते है। अब बात करें इनके पलटने की तो ये एक बोतल में बिकने वाले नेताजी है। जो 26 जनवरी को पत्रकारों के साथ हुई अभद्रता का पूरा नजारा देख रहे थे लेकिन इनकी पत्रकारिता नही जागी और लगे रहे फोटो खिंचवाने में यहां तक तो ठिक था मगर जब पत्रकारों की आवाज बुलंद हुई तो कहने लगे हमको इतने की आवश्यकता नही चार पांच पत्रकार हमारे लिए काफी है बाकि की हमें क्या जरूरत। तो नेताजी आप को ये बता दुुं की पत्रकारों को अपनी आवाज भी उठानी आती है और लडाई लडते भी. आप तो बने रहीये बिन पेंदे के लौटे।
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